खूंटी। जनजातियों के लिए आरक्षित खूंटी विधानसभा सीट पिछले 20 वर्षों से भाजपा का अभेद्य दुर्ग बन गया है। चार चुनावों से क्षेत्र के कद्दावर नेता और राज्य के मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा 2000 से लगातार विरोधियों पर भारी पड़ते आये हैं, चाहे निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस का उम्मीदवार हो या झामुमो का। राजनीति की शुरूआत से लेकर उन्होंने विधानसभा चुनाव में कभी हार का मुंह नहीं देखा। इस बार भी भाजपा ने नीलकंठ सिंह मुंडा पर भरोसा जताते हुए पांचवीं बार उन्हें मैदान में उतारा है।
मुंडा 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीलकंठ सिंह मुंडा ने कांग्रेस की सुशीला केरकेट्टा को पराजित किया था। झारखंड गठन के बाद पहली बार हुए 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में नीलकंठ सिंह मुंडा ने सुशीला केरकेट्टा के बेटे कांग्रेस उम्मीदवार रोशन सुरीन को और 2009 में झामुमो के मसीह चरण पूर्ति को पराजित किया था। उस समय पूर्ति महज 436 वोटों से चुनाव हार गये थे। 2014 के विधानसभा चुनाव में नीलकंठ ने झामुमो के जीदन होरो को 10 हजार से अधिक मतों से मात दी थी। इस चुनाव में नीलकंठ सिंह मुंडा के खिलाफ दलीय और निर्दलीय 11 चुनावी योद्धा ताल ठोंक रहे हैं। झामुमो ने खादी बोर्ड के सेवानिवृत्त अधिकारी सुशील कुमार लांग उर्फ सुशील पाहन को मैदान में उतारा है।
वहीं झाविमो की दयामनी बारला, भारतीय ट्राइबल पार्टी की मीनाक्षी मुंडा, निर्दलीय मसीह चरण मुंडा, अखिल भारतीय झारखंड पार्टी के विलसन पूर्ति, जनता दल यू के श्याम सुंदर कच्छप, निर्दलीय पास्टर संजय कुमार तिर्की, अंबेडकर राईट पार्टी ऑफ इंडिया के कल्याण नाग, बसपा के सोमा कैथा और झारखंड पार्टी के राम सूर्या मुंडा, विधानसभा पहुंचने की आस में जोर आजमाईश कर रहे हैं। क्षेत्र की राजनीति के जानकारों का मानना है कि नीलकंठ सिंह मुंडा के कद-काठी का उम्मीदवार झामुमो या अन्य दलों ने नहीं दिया है।
बता दें कि झामुमो उम्मीदवार को कांग्रेस और राजद का भी समर्थन प्राप्त है। इसके बावजूद कहा जा रहा है कि झामुमो ने नीलकंठ सिंह मुंडा के पक्ष में दमदार उम्मीदवार नहीं दिया। झामुमो कार्यकर्ता भी सुशील पाहन को उम्मीदवार बनाने पर आश्चर्यचकित हैं। वहीं झाविमो ने दयामनी बारला को मैदान में उतारा है। बारला इसके पहले भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अन्य दलों से भाग्य आजमा चुकी हैं, पर कभी वे जमानत तक नहीं बचा सकीं।
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